being gulzarish..
Inspired by Gulzar's poetry, written in pieces at home, in train, here et.
हर जगह हर किसी मोड़ पे
एक तिरछी लकीर की तरह तू खड़ा दिखाई देता है
दिन कभी हँसता है कभी रोता है
न जाने दिन में कितनी बार
बच्चो सा
दिन कितने रंग बदलता है
रात न जाने कितनी सदियों से सोई नहीं है
न जाने कब तक तन्हा यूं जागेगी
रात और दिन को देखती हूँ तो याद आते हैं
वोह दिन और वोह रातें
(a long pause)
वोः भी कैसे दिन थे
रात जगती थी, हम सोते थे
रात की अंखियों से ख्वाबों की बूँदें टपकती थी
कुछ बूँदें तेरी आँखों में गिर जाती थी
कुछ मैं अपनी आँखों में भर लेती थी
रात ख्वाबों में कटती थी
हम सोते थे, रात जगती थी
चंदा छुपके छुपके बादलो से झाँक कर
हमें सोया हुआ देखता था
रात के कानों में कुछ कहता था
फिर झील से नीले आसमान में
कुछ देर तैर कर
किसी घने बदल के पीछे जा कर सो जाता था
हमने कभी चाँद और रात की
बातें नहीं सुनी, पर कभी उनसे
अपनी बातें छुपाई भी नहीं
वोह गवाह थे
उन ख्वाबों के
आज कल का मौसम कुछ और है
सर्द हवाएं चलती है
आते जाते ये हवाएं हमसे यूं टकरा जाती है
दिन गुजरने में सदियाँ लग जाती है
दिन भर रात का इंतज़ार रहता है
और रात होती है तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती
रात गुमसुम सी
टकटकी लगाए चाँद को देखती है
शायद चाँद से लड़ती है
तारे भी अब बगावत करते हैं
न सोते हैं, और न हमें सोने देते हैं
ख्वाब मेरे तुम्हारे खिड़कियों पे टंगे नज़र आते हैं
मेरी आँखों से चांदनी बहती है
तेरी आँखों की तारे झिलमिलाना मानो भूल ही गए हो
(another pause)
घर की छत पे हूँ मैं
आसमान में गहरा नीला रंग फैलता जा रहा है
जैसे तू अपने पेन्टब्रश से आसमान में रंग भर रहा हो
फिर बादलो के बीचोबीच तू एक सफ़ेद लकीर बनाता है
ठीक उसी तरह की एक लकीर मेरी हथेली पे भी है
मैं मुठ्ठी बंद कर लेती हूँ
एक ख्वाब तुझसे चुरा कर अपनी मुठ्ठी में क़ैद कर लेती हूँ
तू हाथ बढ़ाता है, मेरी खिड़की पे टंगे ख्वाब
अपनी जेब में भर लेता है
जब मिलते हैं हम
हम अजनबी से रहते हैं
आँखें ख्वाबों की भाषा में बातें करती हैं
रात की बात, ख्वाब की बात
शायद इनकी यही कहानी है
आँखों से जन्म ले कर ये
आँखों में ही गुम हो जाती है
कभी तुझसे अपनी और कभी खुद से तेरी
बातें करती हूँ
हर जगह हर किसी मोड़ पे
एक तिरछी लकीर की तरह तू खड़ा दिखाई देता है
कुछ कहता नहीं फिर भी मुझसे बातें करता है
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हर जगह हर किसी मोड़ पे
एक तिरछी लकीर की तरह तू खड़ा दिखाई देता है
दिन कभी हँसता है कभी रोता है
न जाने दिन में कितनी बार
बच्चो सा
दिन कितने रंग बदलता है
रात न जाने कितनी सदियों से सोई नहीं है
न जाने कब तक तन्हा यूं जागेगी
रात और दिन को देखती हूँ तो याद आते हैं
वोह दिन और वोह रातें
(a long pause)
वोः भी कैसे दिन थे
रात जगती थी, हम सोते थे
रात की अंखियों से ख्वाबों की बूँदें टपकती थी
कुछ बूँदें तेरी आँखों में गिर जाती थी
कुछ मैं अपनी आँखों में भर लेती थी
रात ख्वाबों में कटती थी
हम सोते थे, रात जगती थी
चंदा छुपके छुपके बादलो से झाँक कर
हमें सोया हुआ देखता था
रात के कानों में कुछ कहता था
फिर झील से नीले आसमान में
कुछ देर तैर कर
किसी घने बदल के पीछे जा कर सो जाता था
हमने कभी चाँद और रात की
बातें नहीं सुनी, पर कभी उनसे
अपनी बातें छुपाई भी नहीं
वोह गवाह थे
उन ख्वाबों के
आज कल का मौसम कुछ और है
सर्द हवाएं चलती है
आते जाते ये हवाएं हमसे यूं टकरा जाती है
दिन गुजरने में सदियाँ लग जाती है
दिन भर रात का इंतज़ार रहता है
और रात होती है तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती
रात गुमसुम सी
टकटकी लगाए चाँद को देखती है
शायद चाँद से लड़ती है
तारे भी अब बगावत करते हैं
न सोते हैं, और न हमें सोने देते हैं
ख्वाब मेरे तुम्हारे खिड़कियों पे टंगे नज़र आते हैं
मेरी आँखों से चांदनी बहती है
तेरी आँखों की तारे झिलमिलाना मानो भूल ही गए हो
(another pause)
घर की छत पे हूँ मैं
आसमान में गहरा नीला रंग फैलता जा रहा है
जैसे तू अपने पेन्टब्रश से आसमान में रंग भर रहा हो
फिर बादलो के बीचोबीच तू एक सफ़ेद लकीर बनाता है
ठीक उसी तरह की एक लकीर मेरी हथेली पे भी है
मैं मुठ्ठी बंद कर लेती हूँ
एक ख्वाब तुझसे चुरा कर अपनी मुठ्ठी में क़ैद कर लेती हूँ
तू हाथ बढ़ाता है, मेरी खिड़की पे टंगे ख्वाब
अपनी जेब में भर लेता है
जब मिलते हैं हम
हम अजनबी से रहते हैं
आँखें ख्वाबों की भाषा में बातें करती हैं
रात की बात, ख्वाब की बात
शायद इनकी यही कहानी है
आँखों से जन्म ले कर ये
आँखों में ही गुम हो जाती है
कभी तुझसे अपनी और कभी खुद से तेरी
बातें करती हूँ
हर जगह हर किसी मोड़ पे
एक तिरछी लकीर की तरह तू खड़ा दिखाई देता है
कुछ कहता नहीं फिर भी मुझसे बातें करता है
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Comments
now enjoy a bit frm me;)
hawa ke jhonke ne kaha
kisi ka mobile kharaab ho gaya:D
jab milte hain hum fiction tha but can be dedicated to say broon :p btw, woh poem hai tere paas? if yes, bhej de pls.!
ps: no songs without it!!